आँधियों ने बड़ा ऊँचा उड़ाया धूल को, पर दो बूँद बारिश ने फिर ज़मीन में मिला दिया।
ज़िद्द एक ऐसी दीवार है जो तोड़े नही टूटती लेकिन इस से रिश्ते जरूर टूट जातें हैं।
दुनिया विरोध तो भी तुम डरो मत क्योंकि जिस पेड़ पर फल लगते हैं दुनिया उसे ही पत्थर मारती है।
जीवन में सबसे अधिक ख़ुशी वह काम करने में है, जिसे लोग कहते हों, के तुम नहीं कर सकते।
आप जीवन में कितने भी ऊँचे क्यों न उठ जाएं, पर अपनी ग़रीबी और कठिनाइयों के दिनों को, कभी मत भूलिये।
ज़िन्दगी में कुछ ऐसा काम करो की, लोग आपका नाम फेसबुक पर नहीं, गूगल पर सर्च करें।
मैंने एक हजार के नोट से कहा की तुम एक कागज़ के टुकड़े भर हो, और उस पर बैठा गाँधी मुस्कुराया, और बोला बिल्कुल ये एक कागज़ का टुकड़ा है, लेकिन इसने आज तक कभी कूड़ादान नहीं देखा।
ऊँचे-ऊँचे मकान और दुकान बनाना बुरी बात नहीं मगर अपने ऊँचे मकान और दुकानों को देख कर अभिमान पाल लेना घोर बुराई है।
किसी दुसरे मनुष्य को सदगुणों के आधार पर आगे रखना व उसको इज्ज़त देना एक बुद्धिमान व समाजिक व्यक्तिव की पहचान होती है।
दूसरों के दोष न देखो, अपने अंदर के दोष देखो, तो निष्चय ही पूर्णतः निर्दोष बन जाओगे।
ईश्वर की स्मृति से ही हम सर्वगुण सम्पन्न हो सकते है और सदगति को प्राप्त कर सकते है, प्रभु के सिमरण से ही आत्मा को परमात्मा से मिलाया जा सकता है, और ये मिलन ही सर्वश्रेष्ठ मिलन है।
रिश्तों में मुलाक़ात और मेल-जोल बड़ा ही जरुरी होता है, नहीं तो रोप कर भूल जाने से पौधे भी सूख जाते हैं।
अपने स्वभाव को सरल बनाआगे तो समय कभी व्यर्थ नही जायेगा।
व्यर्थ कार्य जीवन को थका देता है जबकि रचनात्मक कार्य सुख और तेजस्विता बढ़ा देता है, इसीलिए किस भी कार्य में रचनात्मता बहुत महत्वपूर्ण होती है।
एक स्वस्थ मनुष्य वही है जो अपना शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाये रखे और समाज और मानवता के प्रति सेवा भाव बनाये रखे।
यदि आप सौ लोगों की सहायता नहीं कर सकते तो एक आदमी की ही सहायता आपको उसके दिल में महान बना देगी।
छोटी छोटी बुराइयों को अपने पास न आने दें, क्योंकि बड़ी बुराइयां इनके पीछे पीछे अपने आप चली आती हैं।
ज़िन्दगी मुसीबतों से भरी है, और बेवकूफ़ी के साथ तो और भी बुरी हो जाती है, इसीलिए सोच-समझ कर चलो।
दुनिया में लोग दिखावे से आकर्षित और भर्मित होकर दुनियावी माया जाल में फंस जाते हैं, इसीलिए दिखावटी लोगों और दिखावे से दूर ही रहना चाहिए।
जीवन में सुख और दुःख बराबर-बराबर मात्रा में मिलते हैं, पहले सुख के आने का मतलब है, के निकट भविष्य में दुःख आना तय है, अगर वर्तमान समय दुखों में बीत रहा हो तो, समझो के सुख निकट हैं।
माँ की तकलीफों को कभी नज़रअंदाज़ नहीं करना, चाहिए, क्योंकी जिन की माँ बिछड़ जाती है उन्हे रेशमी बिस्तर पर भी नींद नहीं आती।